Thursday, December 10, 2009

MOUNTAIN CALLING

'हाईवे-यात्रा' का भी एक अलग दर्शन है.सफ़र के दौरान हाईवे पर दिखने वाली हर चीज एक कहानी बयान करती है.मीलों मील का सुनसान रास्ता,जिसमे सड़क के किनारे गाडी लगा कहीं भी खड़े होकर दैनिक क्रियाओं से निपटते लोग़.जिनकी आत्मविश्वास से घूरती निगाहें मानो यही कहती हैं कि इस सुनसान में उन्हें,कौन पहचानने वाला है?वो खाने पीने के अनगिनत ढाबे,जहाँ पकवानों से ज्यादा,खाली डोंगे और तसले दुकान के गेट की शोभा बढ़ाते हैं और कभी कभी ही फंसने वाले ग्राहकों को आकर्षित करते हैं.गाहे बगाहे मिलने वाले,भयंकर ठंडी,महाठंडी बीयर की दुकानें मानो हाईवे जर्नी बिना उनके सेवन के संभव ही न हो.देश में नपुंसकता और मरदाना कमजोरी कितनी बड़ी समस्या है,यह भी हाईवे पर दिखने वाले नीम हकीमो के वॉल-पेनटिंग से पता ही चल जाता है.

दूबे जी के साथ पिछली हाईवे यात्रा बड़ी यादगार रही.वैसे विचारधारा में उनसे मेरा छत्तीस का आकड़ा है,फिर भी यात्रा के बोरिंग लम्हों में चुपचाप बैठे रहने से अच्छा देश की समस्याओं पर दूबे जी का भाषण और नसीहतें सुनना,ज्यादा मनोरंजक है.बातचीत के दौरान एक तेज रफ़्तार ट्रक ने हमें गलत साईड से क्रास किया.अभी हम आगे कुछ मील बढे ही थे कि वो ट्रक हमें सड़क के बीचो बीच धराशाई मिली.दूबे जी सुरक्षित बचे ट्रक ड्राईवर का हालचाल लेने लगे.ड्राईवर पहाड़ो का रहने वाला था और थोडा सांत्वना के बोल सुनते ही अपने दुखों का पिटारा खोल के बैठ गया.पहाड़ी क्षेत्रों में बढती बेरोजगारी और प्रदूषण से दुखी वृद्ध ड्राईवर,अपने बचपन के खूसूरत लम्हों को बयाँ करने लगा.ड्राईवर ने जो बताया,सो बताया पर पहाड़ों का हमारे जीवन में जो महत्व है,उसे कत्तई नज़रंदाज़ नही किया जा सकता.

बचपन में घूमने फिरने या आऊटिंग के लिए पहाड़ों पर जाना मुझे बहुत पसंद था.शादी के बाद संभवतः मेरी तरह का हर युवा हनीमून के लिए भी पहाड़ों पर जाना चाहता है और जीवन के उत्तरार्ध में भी पूजा पाठ और भक्ति के लिए पहाड़ एक अच्छा डेस्टिनेशन है.यानि ज़िन्दगी के हर फेज़ में पहाड़ हमें अपनी ओर बुलाते हैं.यह पहाड़ और वादियाँ सौंदर्य प्रेमी कवियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.पहाड़ धैर्य,शक्ति,जीवटता,अभिमान,स्थायित्व आदि का भी प्रतीक है.हमारे मुहावरों में भी इन्हें सजाया गया मसलन-खोदा पहाड़ निकली चुहिया,राइ का पहाड़,दुखों का पहाड़,ऊँट पहाड़ के नीचे आदि.हमारी फिल्मों की कलात्मकता को भी चार चाँद लगाया पहाड़ों ने.सोचिये यह पहाड़ न होते,तो वादियों में हीरो हीरोईनों की आवाज कैसे गूंजती.शम्मी कपूर याहू गाने पर बर्फ के बजाए कहाँ उछलते?

हमारे माईथोलोजी में भी पहाड़ों का उल्लेख मिलता है.भोले शंकर का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर बताया गया है.समुद्र मंथन में भी मंदराचल पर्वत की भूमिका रही.मुहम्मद साहब को पहला रीवीलेशन 'जबल नूर' पहाड़ के हिरा नाम के गुफा मे मिली.यहूदी और क्रिश्चन मान्यताओं में,ईश्वर के टेन कमांडमेंट्स भी मोज़स को पहाड़ों में ही मिले थे.सवाल यह है कि जीवन के हर पहलू में जब पहाड़ों का इतना इमपारटेंस है तो हम कब इसके महत्व को समझेंगे?वैसे ११ दिसंबर हम 'इंटरनेशनल माउनटेन डे' के तौर पर मना रहे हैं जिसका मुख्य उद्देश्य पहाड़ों का संरक्षण और विकास है पर हम कहीं से भी पहाड़ों को लेकर चिंतित नही दिखते.

बढ़ते प्रदूषण और वनों की कटाई ने पहाड़ों में भूस्खलन को बढ़ा दिया है.बहुत सारे उपयोगी पौधे और हर्ब्स गायब हो रहे हैं.ग्लोबल वार्मिंग ने भी पहाड़ों को पिघलाना शुरू ही कर दिया है.हमारी समस्या यह है कि हम घाव के नासूर बनने के बाद,इलाज ढूंढते हैं.वैसे पर्यावण से जुड़े समस्याओं पर विश्व पहले से ज्यादा चौकन्ना है पर ज़मीनी और बुनियादी स्तर पर भी जागरूकता की जरूरत है.अगर आपने होलीवुड फिल्म २०१२ देखी हो तो फिल्म के अंत में आपने देखा ही होगा कि प्रलय के बाद बनी नयी दुनिया की सबसे ऊंची जगह अफ्रीका के ड्रेकंसबर्ग पर्वत को बताया गया है.सन्देश तो यही है न कि प्रलय के बाद भी इंसान रहे न रहे,यह पर्वत जरूर रहेंगे.सोचना तो हमें अपने बारे में है इसलिए क्यों ना खुद के लिए इन पहाड़ों के बारे में भी थोडा सोचना शुरू कर दें?

११दिसंबर को i-nextमें प्रकाशितhttp://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=12/11/2009&editioncode=1&pageno=16