Saturday, August 29, 2009

LANGUAGE IN A NEW GET-UP


आपकी जिसमें भी आस्था हो(खम्मन पीर बाबा से लेकर साईं बाबा तक)उनका नाम लेकर,इस लेख के प्रारंभ में मैं यह लिख दूं कि अगर इसे पढने के बाद आपने किसी दूसरे को इसे पढने के लिए फॉरवर्ड न किया तो आपके बुरे दिन शुरू हो जायेगे तो आप क्या करेंगे?मेरा विश्वास है कि मन ही मन आप मुझे आर्शीवाद देते हुए शायद इसे फॉरवर्ड कर दें.कल मैंने भी ऐसा ही किया था .मेरे मोबाइल पर एक सन्देश प्राप्त हुआ जिसे ११ लोगों तक न पहुंचाने के परिणाम स्वरुप मेरे बुरे वक़्त शुरू होने का हवाला दिया गया.जी हाँ,इस प्रकार के लघु मोबाइल सन्देश आजकल बहुत आम हैं.पर क्या करें आस्था भी तो कोई चीज है.वक़्त के साथ साथ हमने बहुत कुछ चीजों को लाइफ स्टाइल का हिस्सा बनाया है जिसमे मोबाइल और उसके यह ऐड ऑन सेवा एस एम् एस सबसे प्रमुख हैं.
मोबाइल का प्रयोग करने वाले शायद किसी ही किसी इंसान ने इस फीचर का लाभ ना उठाया हो.फिर चाहे वो किसी को मोर्निंग या नाईट विश करना हो,या त्यौहार पर शुभकामनाएँ देनी हों,किसी रूठे को मनाना हो या टाइम पास करना हो,sms हर तरह से आपके साथ हैं.अब तो मोबाइल कंपनियाँ भी इसके महत्व को बाखूबी समझ गयीं हैं शायद इसिलए एक से बढ़कर एक एस ऍम एस टैरिफ कार्ड्स मौजूद हैं.हमारे टेली कोम कंपनियों को तो हमारी इतनी फिकर है कि आप कुछ पैसे खर्च करके शायरी,चुटकुले,साहित्य से लेकर प्लेन,ट्रेन आदि कि जानकारी,शेयर मार्केट की उठा पटक,क्रिकेट और देश विदेश की खबरें,भविष्यफल,कुछ भी मंगवा सकते हैं..

पर तिवारी जी एस ऍम एस के बढ़ते प्रभाव से बहुत आहत हैं.कहते हैं कि जब से यह एस ऍम एस संस्कृति प्रचलन में आई है,यह अपने साथ एक नयी भाषा भी साथ ले आई है.you घटकर सिर्फ u रह गया है,love में e अनावश्यक है इसलिए lov ही हिट है,my बदलकर ma हो चुका है.वो आगे बताने लगे कि प्रभाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि बच्चे अप्लिकेशन और नोटबुक दोनों में धड़ल्ले से गलत स्पेलिंग लिख रहे हैं और उसे सही भी बता रहे हैं.कल जब उनके बेटे ने उनका जनरेल नोलेज चेक करने के लिए asl का मतलब पूछ लिया तो वो न बता सके.बाद में पूरा मतलब जानकर वो खिसिआए बिना भी नही रह सके.

सोचिये,इस एस एम् एस के आने के बाद कितना कुछ बदला है.अगर आपके अन्दर से कोई शायरी बाहर आने को उतावली है तो बेझिजक उसे फॉरवर्ड कर लोगों को दे मारिए.नए विचारों का इतना अकाल है कि आपके विचार तुंरत स्वीकार कर लिए जायेंगे.चलिए,इसका एक और उपयोग बताता हूँ.इसमें नए रिश्ते जोड़ने की असीम शक्ति होती है.हमारे युवा बंधू अक्सर किसी से जुड़ने के लिए पहले तो उसका नम्बर प्राप्त करते हैं,फिर शायराना और दिल को छू लेने वाले संदेशों से टार्गेट का जीना हराम कर देते हैं.अपेक्षित व्यक्ति की कॉल आये तो रिश्तों की बुनियाद रखने की लपेटू प्रक्रिया शुरू और अगर भाई,पिता पुलिस आदि की काल हो तो तकनीकी गलती का हवाला देकर बच जाते हैं.
समय बदला तो साथ साथ यह एस एम् एस भी बदल गए.एस एम् एस कब एम् एम् एस हो गया पता ही नही चला.किसी को रिझाने के लिए अब सिर्फ टेक्स्ट मैटर ही काफी नही,ग्राफिक्स और म्यूजिक भी सन्देश का हिस्सा बन्ने लगे हैं.पर यह एम् एम् एस और बिगडा तो 'एम् एम् एस काण्ड' जैसे शब्द भी हमारे परिभाषावली का हिस्सा बन गए. भावना व्यक्त करने के अलावा अब हम देश का बेजोड़ गवैया और डांसर तय करने में भी इसका प्रयोग करने लगें हैं.इसके समर्थकों का तो यहाँ तक मानना है कि देश के आम चुनाव भी इसी के जरिए हो जाएँ तो बेहतर.निष्क्रिय और सुस्त पड़ते समाज की फिलहाल कमोवेश सोच तो यही है.जी हाँ,एस ऍम एस के साथ साथ भाषा ही नही बल्कि रिश्ते और सामाजिक सक्रियता भी सिकुड़कर छोटे होते जा रहे है पर तकनीक के इस दौर में रिश्तों और भावनाओं के बारे में लोग कम ही सोचते हैं पर आप एक बार जरूर सोचियेगा.
(२९ अगस्त को आई नेक्स्ट में प्रकाशित).http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=8/29/2009&editioncode=1&pageno=16#

Thursday, August 13, 2009

मस्ती की पाठशाला....

आजकल सारा समय गाने सुनने में बीतता है.नही नही,मैं छुट्टिया नही मना रहा,जॉब ही कुछ ऐसी है,सोचने बैठा कि इस अंतररास्ट्रीय युवा दिवस को व्यावसायिक तरीके से रेडियो पर कैसे मनाया जाए?कुछ फ़िल्मी गानों का चुनाव करना था जो युवाओं का प्रतिनिधित्व करता हो.किसी ने रंग दे बसंती के 'मस्ती के पाठशाला' गाने का नाम सुझाया.गीत को सुनने बैठा तो लगा कि वाकई यह आज के युवाओं का दर्शन है.गाने में एक लाइन है.'टल्ली होकर गिरने से हमने सीखी ग्रविटी'...यानी आज का युवा ग्रविटी के नियमों को समझने के लिए किताबों और फिजिक्स के क्लास में सर नही खपाता.उसके पास दूसरे ऑप्शन्स भी हैं.भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तो वैसे १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर मनाते हैं पर हम भारतीय विश्व बंधुत्व और ग्लोबल विलेज की भावना से प्रेरित हैं तो १२ अगस्त को अंतरास्ट्रीय युवा दिवस मनाने में हर्जा क्या है?

वस्तुतः युवा दिवस मनाने का उद्देश्य है कि युवाओं की समस्याओं पर विचार किया जाए पर युवाओं की वास्तविक समस्याएँ क्या हैं?इस विषय में मैंने जब अपने युवा मित्रों से पूछा तो उनके जवाब अलग अलग मिले.किसी का कहना था कि रेसेशन के चलते रोजगार की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है.कोई नशाखोरी और गैरजिम्मेदारी को बड़ी समस्या मान रहा था.पर दूबे जी की माने तो युवाओं की सबसे बड़ी समस्या गर्लफ्रेंड है.चूंकि उनका नया नया ब्रेकअप हुआ है तो मै समझ सकता था पर वो वहीँ शांत नही हुए.कहने लगे कि जिनके पास गर्ल फ्रेंड है,उनकी समस्या यह है कि वो उनसे ठीक से मिल नही पाते,क्यों?अरे प्यार का दुश्मन तो सारा ज़माना है .और जिनके पास गर्लफ्रेंड नही हैं वो उनको देख देख कर कुढ़ते रहते हैं,जिनके पास यह नेमत है.यानी देश का विकास सिर्फ इसलिए रुका है कि युवाओं का ध्यान अपने काम पर नही बल्कि गर्लफ्रेंड की समस्या पर है.पाश्चात्य देश शायद इसी वजह से तरक्की कर रहे हैं.

पर मैं जरा युवा शब्द के अर्थ को लेकर भ्रमित हूँ.युवा कौन हैं?क्या मैं युवा हूँ जो दिन भर के जॉब के बाद मनोरंजन के अन्य विकल्पों के बारे में भी सोचता है?या युवा वो है जो मल्टीनेशनल के कपडे पहनता है,वीकेंड्स को पब और डिस्को जाता है और कल की चिंता नही करता.राहुल गाँधी ने एक बार कहा था कि मनमोहन सिंह युवा हैं क्योंकि वो आगे,भविष्य की ओर देखते हैं..बॉलीवुड का एक्साम्पल लें तो देव आनंद भी युवा हैं क्योंकि ८५ साल की आयु में वो आज भी फिल्में बना रहे हैं.चलिए इस बहस को सिर्फ इस बात से समाप्त किया जा सकता है कि किसी का तन नही मन जवान होना चाहिए.लेकिन जिनका तन भी जवान है उनका क्या? भारत की अधिकाँश आबादी युवाओं की है पर युवाओं की सामाजिक भागेदारी ऍम बी ए करके ऊंची सलरी उठाने,विदेश में जॉब पाने और राजनीतिज्ञों को गालियाँ देने में है.पिछले दिनों खबर आई कि देश के ३० युवा सांसद सेना में भरती होना चाहते हैं .खबर सकारात्मक थी पर साथ में वो यह भी चाहते हैं कि दो महीनो की होने वाली ट्रेनिंग मात्र एक महीने हो.जाहिर है कि ट्रेनिंग करने के बाद वो सीमाओं पर जाकर लडेंगे तो नही.यानी सेना का रुतबा और ग्लैमोर तो चाहिए पर झंझट नही.

युवा बदल रहा है.बदले भी क्यों न..बदलाव,विकास और आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं.पर यह बदलाव जरा हट के है.आज का युवा ज्यादा मतीरिअलिस्टिक हो गया है.उसे ज्यादा से ज्यादा पैसा और सफलता कम समय में चाहिए क्योंकि उनका मानना है कि अगर जवानी ही नही रही तो इन भौतिक सुखों का लाभ कब उठाएँगे.यानी आज का युवा जवानी काम करके बिताने और बुढापा आराम से गुजारने वाले पुराने कांसेप्ट पर नही चलता.उसे ज्यादा का इरादा है.पर कितने ज्यादा का इरादा इसके सीमाओं का निर्धारण आज के युवा को ही करना है क्योंकि समाज गिव एन टेक की पॉलिसी पर चलता है.यानी समाज हमें जो देता है,उसके बदले हमें भी समाज को कुछ देना पड़ता है.और अगर सिर्फ अपने बारे में सोचने में युवा ने समाज को भुला दिया तो समाज भी एक दिन उसे भुला देगा.
(१२ अगस्त को आई-नेक्स्ट में प्रकाशित)