Thursday, August 13, 2009

मस्ती की पाठशाला....

आजकल सारा समय गाने सुनने में बीतता है.नही नही,मैं छुट्टिया नही मना रहा,जॉब ही कुछ ऐसी है,सोचने बैठा कि इस अंतररास्ट्रीय युवा दिवस को व्यावसायिक तरीके से रेडियो पर कैसे मनाया जाए?कुछ फ़िल्मी गानों का चुनाव करना था जो युवाओं का प्रतिनिधित्व करता हो.किसी ने रंग दे बसंती के 'मस्ती के पाठशाला' गाने का नाम सुझाया.गीत को सुनने बैठा तो लगा कि वाकई यह आज के युवाओं का दर्शन है.गाने में एक लाइन है.'टल्ली होकर गिरने से हमने सीखी ग्रविटी'...यानी आज का युवा ग्रविटी के नियमों को समझने के लिए किताबों और फिजिक्स के क्लास में सर नही खपाता.उसके पास दूसरे ऑप्शन्स भी हैं.भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस तो वैसे १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर मनाते हैं पर हम भारतीय विश्व बंधुत्व और ग्लोबल विलेज की भावना से प्रेरित हैं तो १२ अगस्त को अंतरास्ट्रीय युवा दिवस मनाने में हर्जा क्या है?

वस्तुतः युवा दिवस मनाने का उद्देश्य है कि युवाओं की समस्याओं पर विचार किया जाए पर युवाओं की वास्तविक समस्याएँ क्या हैं?इस विषय में मैंने जब अपने युवा मित्रों से पूछा तो उनके जवाब अलग अलग मिले.किसी का कहना था कि रेसेशन के चलते रोजगार की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है.कोई नशाखोरी और गैरजिम्मेदारी को बड़ी समस्या मान रहा था.पर दूबे जी की माने तो युवाओं की सबसे बड़ी समस्या गर्लफ्रेंड है.चूंकि उनका नया नया ब्रेकअप हुआ है तो मै समझ सकता था पर वो वहीँ शांत नही हुए.कहने लगे कि जिनके पास गर्ल फ्रेंड है,उनकी समस्या यह है कि वो उनसे ठीक से मिल नही पाते,क्यों?अरे प्यार का दुश्मन तो सारा ज़माना है .और जिनके पास गर्लफ्रेंड नही हैं वो उनको देख देख कर कुढ़ते रहते हैं,जिनके पास यह नेमत है.यानी देश का विकास सिर्फ इसलिए रुका है कि युवाओं का ध्यान अपने काम पर नही बल्कि गर्लफ्रेंड की समस्या पर है.पाश्चात्य देश शायद इसी वजह से तरक्की कर रहे हैं.

पर मैं जरा युवा शब्द के अर्थ को लेकर भ्रमित हूँ.युवा कौन हैं?क्या मैं युवा हूँ जो दिन भर के जॉब के बाद मनोरंजन के अन्य विकल्पों के बारे में भी सोचता है?या युवा वो है जो मल्टीनेशनल के कपडे पहनता है,वीकेंड्स को पब और डिस्को जाता है और कल की चिंता नही करता.राहुल गाँधी ने एक बार कहा था कि मनमोहन सिंह युवा हैं क्योंकि वो आगे,भविष्य की ओर देखते हैं..बॉलीवुड का एक्साम्पल लें तो देव आनंद भी युवा हैं क्योंकि ८५ साल की आयु में वो आज भी फिल्में बना रहे हैं.चलिए इस बहस को सिर्फ इस बात से समाप्त किया जा सकता है कि किसी का तन नही मन जवान होना चाहिए.लेकिन जिनका तन भी जवान है उनका क्या? भारत की अधिकाँश आबादी युवाओं की है पर युवाओं की सामाजिक भागेदारी ऍम बी ए करके ऊंची सलरी उठाने,विदेश में जॉब पाने और राजनीतिज्ञों को गालियाँ देने में है.पिछले दिनों खबर आई कि देश के ३० युवा सांसद सेना में भरती होना चाहते हैं .खबर सकारात्मक थी पर साथ में वो यह भी चाहते हैं कि दो महीनो की होने वाली ट्रेनिंग मात्र एक महीने हो.जाहिर है कि ट्रेनिंग करने के बाद वो सीमाओं पर जाकर लडेंगे तो नही.यानी सेना का रुतबा और ग्लैमोर तो चाहिए पर झंझट नही.

युवा बदल रहा है.बदले भी क्यों न..बदलाव,विकास और आगे बढ़ने के लिए जरूरी हैं.पर यह बदलाव जरा हट के है.आज का युवा ज्यादा मतीरिअलिस्टिक हो गया है.उसे ज्यादा से ज्यादा पैसा और सफलता कम समय में चाहिए क्योंकि उनका मानना है कि अगर जवानी ही नही रही तो इन भौतिक सुखों का लाभ कब उठाएँगे.यानी आज का युवा जवानी काम करके बिताने और बुढापा आराम से गुजारने वाले पुराने कांसेप्ट पर नही चलता.उसे ज्यादा का इरादा है.पर कितने ज्यादा का इरादा इसके सीमाओं का निर्धारण आज के युवा को ही करना है क्योंकि समाज गिव एन टेक की पॉलिसी पर चलता है.यानी समाज हमें जो देता है,उसके बदले हमें भी समाज को कुछ देना पड़ता है.और अगर सिर्फ अपने बारे में सोचने में युवा ने समाज को भुला दिया तो समाज भी एक दिन उसे भुला देगा.
(१२ अगस्त को आई-नेक्स्ट में प्रकाशित)

2 comments:

Unknown said...

aap ne yuwa warg ko naye tarike se tatkalin paristhitiyo me define kiya hai,"yuwa wo hai jo bhawisya dekhta hai tatha maan se yuwa hai "es pankti ka jawab nahi..mai netmastak hu aap ki lekhani pe.........

हरकीरत ' हीर' said...

यानी समाज हमें जो देता है,उसके बदले हमें भी समाज को कुछ देना पड़ता है.और अगर सिर्फ अपने बारे में सोचने में युवा ने समाज को भुला दिया तो समाज भी एक दिन उसे भुला देगा.

उम्दा लेखन और सही सोच.........!!