Thursday, April 9, 2009

जागो रे यंगिस्तान!!

यह लेख आप i-next,e-paper पर भी पढ़ सकते हैं।http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspxedate=4/7/2009&editioncode=1&pageno=16

बहुत ही exciting वर्ड है यह!अगर मेरी यादाश्त सही है तो यह वर्ड एक इंटर नेशनल सॉफ्ट ड्रिंक के ऐड के बाद से फैमस हुआ था.इसे अपने dictionary का हिस्सा बनाने से पहले,इसके मीनिंग को मैंने अपने पिताजी से जानना चाहा.मेरे पिताजी कोई अपवाद नहीं हैं.अधिकाँश गार्जिअन्स की तरह वो भी मेरे लाइफ स्टाइल से पूरी तरह से satisfied नहीं.उनके जवाब में वह dissatisfaction पूरी तरह दिखाई देता है. कहने लगे कि यंगिस्तान वो हैं जो multinational companies के कपडे पहनता है,मैक डी और c c d में कॉफी पीता है,वीकएंड डिस्को और पब में बिताता है,पिताजी को पौप्स और मम्मी को मॉम्स बुलाता है और हाँ,किसी के हाल और चाल को wassup बोलकर पूछता है.
इस जवाब में थोडा बहुत इशारा तो मेरे तरफ भी था पर वो भी अपने जगह सही हैं.आईऐ ,इसे एक एक्साम्पल से समझने की कोशिश करते हैं.मैं लव मैरेज को सपोर्ट करता हूँ (हालांकि यह बात मैं अपने पिताजी के सामने नहीं बोल सकता).मेरे पिताजी इसे सपोर्ट तो नहीं करते पर इसे फिल्मों तक में सही मानते हैं.कैसे?मैंने उन्हें अक्सर ऐसी कई फिल्मों को देखते समय इमोशनल होते देखा है जिसमें हीरो अक्सर हिरोइन के प्यार के लिए पूरे समाज से लड़ता है.रही बात मेरे दादाजी की,उन्हें तो प्रेम विवाह फिल्मों तक में भी स्वीकार नहीं थीं
कहने की जरूरत नहीं कि समाज के साथ यंगिस्तान का चेहरा भी बहुत तेजी से बदल रहा है.इसका भी एक्साम्पल चाहिए.मेरे बड़े भाई साहब अपने पैसों से ब्रांडेड कपडे पेहेनते हैं(उस उम्र में जिसमे मेरे पिताजी,मेरे दादाजी से पैसे लेकर कपडे सिलवाते थे,हालांकि मेरे पिताजी का कहना है कि ऐसा उन्हें करते समय बहुत बुरा लगता था ).यंगिस्तान का यह रुख सिर्फ लाइफ स्टाइल तक लिमिटेड नहीं है.यह वही यंगिस्तान है जो सत्यम जैसे giant मलटी नेशनल कंपनी में हुए फ्रौड़ के चलते जॉब्स खोने के बावजूद हिम्मत नहीं हारता.धोनी की मानें तो हमारा आज का यंगिस्तान अपनी प्यास के सहारे मंजिल तक पहुँचने की कुव्वत रखता है.यह वो हैं जो आज ज्यादा spiritual हैं.अगर यह वीकएंड को पब और डिस्को में जाते हैं तो इन्हें मंगलवार या शनिवार को मंदिर से निकलते भी देखा जा सकता है.
पर सवाल यह है की इस यंगिस्तान की भागेदारी देश के विकास में कहाँ तक है?यंगिस्तान आज हर फील्ड में डोमीनेट कर रहा है सिवाय एक जगह के और वो है,पॉलिटिक्स . यह वो हिस्सा है जहाँ आज भी "ओल्दिस्तान" का जलवा कायम है.फिर से एक्साम्पल चाहिए.ठीक है..हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ७६ साल के हैं.अगर इस बार अडवानी जी की किस्मत खुली तो वो ८१ वर्ष की उम्र में सत्ता सम्हालेंगे और मोरार जी देसी के पुराने रिकॉर्ड ८१ साल वाले की बराबरी भी कर लेंगे.अटल जी ने पहली बार ७२ साल की उम्र में सत्ता का स्वाद चखा था.एक्साम्पल्स अनगिनत है,पर क्या करें, प्रिंट मीडियम में स्पेस की बहुत value होती है.
आज का yuth मानता है कि पॉलिटिक्स गन्दी है.मेरे एक राजनितिक मित्र हैं जिनका मानना है कि ,गन्दी पॉलिटिक्स नहीं, इसे करने वाले हैं.और अगर यह गन्दी है भी तो इसे साफ़ क्यों न करें.इस साल लोकसभा चुनावों में १ करोड़,१० लाख,६४ हज़ार,५०७ वोटर अपने डेमोक्रेटिक पॉवर का यूस करेगा.इसमें 35 लाख वोट्स २०-२९साल के यूथ की हैं. जागो यंगिस्तान.कुछ बदल डालने का मौका बहुत पास में है.इस बार थोडी देर करोगे तो morally अगले 5 साल तक का और इंतज़ार करना पड़ेगा.और मंदी और कोस्ट कटिंग के इस दौर में इन ५ सालों में क्या कुछ बदलने वाला है ,यह कोई नहीं जानता!!!

दर्द ऐ मीडिया

मैं कौन हूँ॥पूछा मैंने जब खुद से यह सवाल,
तो कई जवाब मिले...
कुछ जाने से ...कुछ अनजाने से॥
मै पत्रकार हूँ...मैं लिपिक या पेज-सेटर तो नहीं॥
पर जबसे काम किया प्रिंट मीडिया में...टाईपिंग आ गयी!!!
मै टी वी पत्रकार,ठेकेदार नहीं।
पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आने के लिए ;दलाली और खरीद फरोख्त जरूरी है!!
क्या मै पी आर परसन हूँ?
पूछता हूँ यह सवाल खुद से..पर मुझे दारू पिलाना और लड़की मुहैया कराना भी तो नहीं आता!!!

कॉपी लेखन एक क्रिएटिव कार्य है॥
पर विज्ञापन जगत को होर्डिंग लगाने वाले की भी जरूरत है॥
लेखन और रस्सियों पे चढ़ना मेरे समझ से बाहर है॥
क्या यही मीडिया है...पूछा जब मैंने खुद से ॥
दिल तो मर चुका था॥
दिमाग ने माइक सम्हाला.बोला ..बेटा!यह मल्टी-टास्किंग का जमाना है..
प्रतिभा के साथ जुगाड़ भी तो कमाना है।
तभी नजर पड़ी यंगिस्तान के एक सर्वे पर॥
कहते हैं...लड़कियों में मल्टी-टास्किंग की स्वाभाविक गुण होते हैं!!
तब मुझे यह ख्याल आया॥क्यों मीडिया में लौंडियों का बोलबाला है..
हम पुरुषों का तो अपने स्वाभाविक गुणों से ही मुँह काला है!!

"सेव वाटर,ड्रिंक बियर"

आप यह लेख i-next e-paper में भी पढ़ सकते हैं http://www.inext.co.in/epaper/Default.aspx?edate=3/20/2009&editioncode=1&pageno=16#

चौंकगए ना!!मै भी चौंक गया था।यह लाइंस मैंने कल एक यंगिस्तान के नागरिक के टी-शर्ट पर देखीं.सोचा,यह किस प्रकार का social awareness है?पूछने पर उसने बताया कि 22nd मार्च को world water day है.ताज्जुब की बात है कि जब मैंने इस बारे में अपने फ्रेंड्स से बात की,तो उन्हें इस बारे में नहीं पता था.वैसे तो मेरा ऐज-ग्रुप भी यंगिस्तान को रेप्रेजेंट करता है पर आजकल हमें वलेनटाइन्स डे,रोस डे,फ्रेंशिप डे जैसे relations और humanity से जुड़े celebrations मनाने से फुर्सत मिले तब तो नेचर और एनवायरोमेंट के बारे में सोचें !!!

मैंने अपने एक पत्रकार मित्र से पूछा,"जानते हो कि पानी कितना important है?"उसने एक अलग ही नजरिया पेश किया।कहने लगा कि पानी न होता तो विजय माल्या की उस कंपनी के वो प्रोडक्ट ना होते जिसका बेसिक ingrediant पानी है,और अगर ऐसा होता तो माल्या साहेब बापू की सामग्री देश में वापस कैसे लाते?पानी न होता politicians कोक पेप्सी का विरोध करके अपने पॉलिटिक्स को कैसे चमकाते?पानी न होता तो कावेरी नदी के पानी के लिए दो स्टेट आपस में कैसे लड़ते?पानी न होता तो कोसी नदी जैसा डिसास्टर न होता और न ही हमारे नेताओं को हेलीकॉप्टर से सैर करने का मौका मिलता?

वैसे ,पानी और हमारी फिल्मों का भी बहुत गहरा रिश्ता है।सोचिये,पानी न होता तो बरसात,बरसात की एक रात,बादल,गंगा जमुना सरस्वती,राम तेरी गंगा मैली,सावन-भादो,सावन को आने दो,वाटर,टाइटैनिक जैसी फिल्में ना होती .और तो और,वो सदाबहार सुपर हिट गाने मसलन भीगी भीगी रातों में,टिप टिप बरसा पानी,ताल मिलें नदी के जल में,घनन घनन घिर आये बदरा,पानी पानी रे,जैसे अनगिनत गाने ना होते.हमारे फ़िल्मी डेरेकटर्स के लिए पानी और बारिश एक रोमांटिक पहलु रहा है.सोचिये,पानी के अभाव में उनके हीरो हीरोइन्स के भीगने के दृश्य के बिना फिल्मों के शूट करने की क्रीऐटीविटी का क्या होता?

यह तो हुई मीडिया और फिल्मों के aspect से पानी का importance,पर हालात उतने फनी नहीं हैं जितनी की उपर लिखी बातें।पानी के लिए हमारी awareness की reevaluation की जरूरत है.इस बार सालों बाद मैं अपने गाँव गया था .मुझे अपने घर के आसपास के अनेकों हैण्डपम्प सूखे मिले.पता चला कि जल स्तर नीचे चला गया है.जो पम्प नहीं सूखे,उनसे polluted पानी आने लगा है.यह हाल सिर्फ मेरे गाँव की नहीं बल्कि कमोवेश सारे देश की है.शहरों में ज्यादा इसलिए नहीं पता चलता क्योकि पानी के लिए अधिकतर हम सरकारी आपूर्ति पर आधारित हैं.और अगर गन्दा या polluted पानी की आपूर्ति होती है तो हम सरकार और प्रशाशन को कोसकर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं.और अगर हम aware(खुद के लिए या अपने प्रियजनों के लिए) हैं,तो water sanitation का हर संभव जुगाड़ कर लेते हैं.

पर अब हमें खुद के साथ साथ अपने society के बारे में भी सोचना पड़ेगा।united nations general assembly ने 1993 से ही वर्ल्ड डे फॉर वाटर मनाने का फैसला किया है.इस दिन फ्रेश वाटर के किसी भी ख़ास पहलु को ध्यान में रखकर awareness programme चलाये जाते हैं.साल 2009 में इसकी थीम है-"shared water,shared opportunities"इसके अंतर्गत transboundary water resources के कुशल प्रबंधन द्वारा देशों के मध्य mutual respect,understanding और विश्वास उत्पन करके,शांति,सुरक्षा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है.थीम चाहे कोई हो पर पानी से जुड़ा हर पहलु हमारी personal life को कहीं न कहीं प्रभावित करता है.

बचपन में एक poem खूब पढ़ी थी."मछली जल की रानी है,जीवन उसका पानी है"शायद हमने कुछ ज्यादा ही दिल से इसे मान लिया वर्ना हम अभी तक यह अच्छी तरह समझ जाते कि पानी हमारे लिए भी उतना ही important है जितना मछली के लिए.इस होली पर पानी फिजूल में waste करते हुए इस बारे में नहीं सोचा था न!कोई बात नहीं,अभी देर नहीं हुई.लेकिन जल्दी कीजिये,पानी आज फ्री है.ऐसी दुनिया की कभी कल्पना की है जब पानी भी पेट्रोल की तरह बिकना शुरू हो जाए और सरकार को उसपर भी सबसीडी देनी पड़े.