Thursday, April 9, 2009

दर्द ऐ मीडिया

मैं कौन हूँ॥पूछा मैंने जब खुद से यह सवाल,
तो कई जवाब मिले...
कुछ जाने से ...कुछ अनजाने से॥
मै पत्रकार हूँ...मैं लिपिक या पेज-सेटर तो नहीं॥
पर जबसे काम किया प्रिंट मीडिया में...टाईपिंग आ गयी!!!
मै टी वी पत्रकार,ठेकेदार नहीं।
पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आने के लिए ;दलाली और खरीद फरोख्त जरूरी है!!
क्या मै पी आर परसन हूँ?
पूछता हूँ यह सवाल खुद से..पर मुझे दारू पिलाना और लड़की मुहैया कराना भी तो नहीं आता!!!

कॉपी लेखन एक क्रिएटिव कार्य है॥
पर विज्ञापन जगत को होर्डिंग लगाने वाले की भी जरूरत है॥
लेखन और रस्सियों पे चढ़ना मेरे समझ से बाहर है॥
क्या यही मीडिया है...पूछा जब मैंने खुद से ॥
दिल तो मर चुका था॥
दिमाग ने माइक सम्हाला.बोला ..बेटा!यह मल्टी-टास्किंग का जमाना है..
प्रतिभा के साथ जुगाड़ भी तो कमाना है।
तभी नजर पड़ी यंगिस्तान के एक सर्वे पर॥
कहते हैं...लड़कियों में मल्टी-टास्किंग की स्वाभाविक गुण होते हैं!!
तब मुझे यह ख्याल आया॥क्यों मीडिया में लौंडियों का बोलबाला है..
हम पुरुषों का तो अपने स्वाभाविक गुणों से ही मुँह काला है!!

5 comments:

प्रवीण द्विवेदी की दुकान said...

ये दर्द सिर्फ आपका नही पूरे पत्रकारिता जगत के छात्रों का दर्द है कविता उम्दा है

kranti ki patrakarita said...

hum dard samagh sakte hain

Anonymous said...

yehi haal hai sabka..sirf media ka nhi..dis applies to each and every field..be it HR, marketing, software development, business... every sector faces d sme problem...
ummm well dre is one thing id like to say though being a gal... d second last line of ur poem uses d word 'laundiyon' plz substitute it wid a more dignified word...its marring d bauty of ur verse...else its an amazing write up..

sikandar saifi said...

aapka blog aur post hamein pasand hain.

ashi said...

ya it's true....i am agree with you..