'आ बैल मुझे मार' वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी.दूबे जी से बात करना कुछ वैसा ही है.सुबह सुबह उनको,अपने सुपुत्र पर आग उगलते देख कहाँ से कहाँ मैंने उनसे इसका कारण पूछ लिया.बस हो गए शुरू.बताने लगे कि उनके लड़के से बड़ा नालायक तो इस दुनिया में कोई नहीं.उसे यह भी नहीं पता कि इस महीने,देश दुनिया में क्या महत्वपूर्ण हो रहा है?जब उन्होंने अपनी प्रश्नवाचक नज़रें मुझ पर डालीं तो मैंने दिमाग पर जोर देते हुए उन्हें बताया कि किंगफिशर कैलेंडर गर्ल २०१० की तलाश शुरू है,बिग बॉस के घर में घमासान मचा हुआ है,रोडीज़ ७ शुरू हो चुका है,शिल्पा शेट्टी शादी करने वाली हैं और तो और मोबाइल में सेकंड की कॉल रेट लागू हो चूकी है.अब महंगाई और आतंकवाद से यूज टू हो चुके आम इंसान को कुछ पलों के लिए एम्युजमेंट देने वाली इन ख़बरों से ज्यादा इमपोरटेंट क्या हो सकता है?
दूबे जी फट पड़े और मेरी यंग जेनरेशन को कोसने लगे.चूँकि यह मेरे लिए आम बात है तो मैंने इसे नज़रंदाज़ करके यह पूछ ही लिया कि वहीँ अपने प्रश्न का उत्तर दें.वो बताने लगे कि १४ नवम्बर को हम वर्ल्ड डाईबेटीज डे मनाएंगे.उनके अनुसार,यह डाईबेटीज,देश के सामने खड़ी,सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.मैंने उन्हें बताया कि १४ नवम्बर को तो हम चाचा नेहरु का जन्मदिन 'बाल दिवस' के तौर पर भी तो मनाते हैं तो वो भावुक हो उठे.कहने लगे कि अगर आज चाचा नेहरु होते तो खेल के मैदान छोड़कर कंप्यूटर पर चिपके और जंक फ़ूड खा खा कर कुप्पा होते इन बच्चों को देखकर कितना दुखित होते .वो तो बेडा गर्क हो इन कंप्यूटर वालों का जो कबड्डी,गिल्ली डंडा,साईकिलिंग जैसे शारीरिक एक्टिविटी वाले खेल भी घर के चारदीवारी के बीच कंप्यूटर स्क्रीन पर उपलब्ध कराने लगे हैं.
मैंने बात को टालने के लिए इस बीमारी को 'बड़े लोगों की बीमारी' करार दे दिया.पर आज दूबे जी का दिन था.वो अपने आंकडों के साथ तैयार थे.कहने लगे कि डाईबेटीज और डेमोक्रेसी एक जैसे हैं.सभी वर्ग के लोगों को सामान रूप से देखती हैं.वास्तव में इस रोग के विश्व व्यापी रूप को देख कर ही अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन (आई. डी. ऍफ़.) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिल कर वर्ल्ड डाईबीटीज डे की शुरुआत १९९१ में की। यह इंसुलिन के खोजकर्ता फ्रेद्रेरिक बैंटिंग के जन्म दिवस पर मनाया जाता है।मैंने उन्हें याद दिलाया कि क्या वैसे ही हमारे पास ऐड्स,गठिया,दमा,टी बी,और यह नया नया स्वाइन फ्लू जैसे रोग कम हैं कि आप डाईबीटीज जैसे बीमारियों से परेशान हैं तो उन्होंने एक और आंकडा मेरे मुह में ठूंस दिया.अंतर्राष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडेरेशन के अनुसार, २००७ में लगभग ४.१ करोड़ भारतवासी मधुमेह से पीड़ित थे, जो विश्व भर के मधुमेहियों का १६.७ प्रतिशत है। यह संख्या २०२५ में ७ करोड़ तक बढ़ जाने की संभावना है.
अंततः मुझे भी एहसास हुआ कि मामला गंभीर है.बचपन से मधुमेह रोग को इतने कॉमन तरीके से अपने आस पास देखा है कि इसकी भयावह रूप और प्रसार से अछूता रहा.मैं तो यही समझता रहा कि यह एक ऐसी राजसी बीमारी है जिसमे आपको ख़ास तवज्जो मिलती है मसलन अलग से बिना चीनी की चाय बनना,लोगों को दिखाना की आप खाने के मामले में कितने चूजी हैं,यह खाना है,यह नहीं खाना है आदि आदि. पहले तो यह उम्र दराज़ लोगों की बीमारी समझी जाती थी पर अब हालात् बदल चुके हैं.असंतुलित भोजन और गड़बड़ जीवन शैली ने युवाओं तक को इसके चंगुल में ले लिया है.बाज़ार ने भले ही हमारे लिए लो शुगेर मिठाईयाँ और लो कैलोरी सुगर उपलब्ध करा दी हों,भले ही लोग आज मुँह मीठा नहीं, कुरकुरे कर रहे हों पर सिर्फ इतना ही काफी नहीं है .२००९-२०1३ के लिए वर्ल्ड डाईबीटिस डे की थीम है-Diabetes Education and Prevention.आईए,इससे जुड़ीं जानकारियों के प्रसार का हिस्सा बन इसकी रोकथाम में मदद करें वरना वो दिन दूर नहीं जब आप ख़ुशी के पलों में किसी से यह भी ना कह सकेंगे कि-'कुछ मीठा हो जाए'.