Friday, July 10, 2009

सिर्फ बेफिक्री काफी नहीं...

कल यूं ही एक विज्ञापन पर ऩजर पड़ गयी, जो अपने ग्राहकों को ऐश कर, बे फिकर का सन्देश दे रहा था. यह कंडोम का विज्ञापन था. एक दूजा इसी तरह का विज्ञापन इग्नाइट द पैशन का संदेश देता है. कुछ तो नए फ्लेवर्स का झांसा भी दे रहे हैं. पर इनका प्राइमरी काम प्रेगनेंसी रोकना या एड्स से रोकथाम है यह जानकारी इनके पैक्स या विज्ञापन में इतने छोटे अक्षरों में लिखी होती है कि शायद इन्हें पढ़ने के लिए मैग्नीफायर की जरूरत पड़े.

कितना बदल गया है न हमारा ऩजरिया. हमारे समाज में सेक्स हमेशा से वंश बढ़ाने का माध्यम समझा गया है. यह अलग बात है कि यह मनोरंजन और शारीरिक जरूरतों का भी माध्यम है पर शायद ही हमने पब्लिकली इस बात को एक्सेप्ट किया हो. लेकिन ये विज्ञापन हमारी बदलती सोच को दिखाते हैं. जी हां, फैमिली प्लानिंग के इन तरीकों को हम अच्छे से समझ तो गए हैं पर हमारे समझ की दिशा ज़रा बदल सी जरूर गयी है. कुछ सर्वे कहते हैं कि इमर्जेसी कंट्रासेप्टिव पिल्स का उपयोग ज्यादातर कॉलेज गोइंग युवा ही कर रहे हैं.

परिवार नियोजन के तरीकों की बात चल ही रही है तो आपको याद ही होगा कि हम आज (11 जुलाई) विश्व जनसंख्या दिवस मना रहे हैं. इस दिन हम जनसंख्या और उससे रिलेटेड प्रॉब्लम्स पर विचार करते हैं. जहां तक भारत की बात है तो पिछले कुछ सालों में इस प्रॉब्लम के प्रति लोगों के ऩजरिए में चेंज तो आया ही है, यह मानने से कोई इंकार नहीं कर सकता. घटती जनसंख्या वृद्धि दर इस बात का सबूत है कि अब हममें से अधिकांश लोग हम दो हमारे एक की ओर बढ़ चले हैं. धारा 377 के खत्म होने की बात न ही करें तो ठीक. वो खास लोग तो हम दो और हमारे एक भी नहीं की ओर आमादा हैं, जिससे हमारे धर्मगुरू भी बहुत चिंतित हैं.

हमारे भारत में आबादी की कई वजहें हो सकती हैं. पहली तो यह कि यहां बच्चे, बुजुर्गो के आशीर्वाद और ऊपर वाले की देन हैं. किसी नव विवाहित महिला को दूधो नहाओ, पूतो फलो का आशीर्वाद मिलते नहीं देखा है क्या? कुछ बेचारों की दूसरी समस्या है. मेरे एक जानने वाले श्रीमान जी के 10 बच्चे हैं. कहने लगे कि उनकी मिल्कियत संभालने वाला कोई लड़का न था सो एक लड़के की उम्मीद में नौ रीटेक ले लिए. कुछ लोगों को घर में लक्ष्मी की दरकार थी. सो बढ़ गया परिवार. खैर, यह सब अब अपनी पुरानी बाते हैं. अब हम जागरूक हैं. हमें परिवार नियोजन के तरीकों के बारे में पता है. टीवी पर बढ़ते कंडोम्स और कंट्रासेप्टिव पिल्स के विज्ञापन इसके उदाहरण हैं. याद है दूरदर्शन का वह दौर जब किसी कार्यक्रम के बीच वो कंडोम का चिर-परिचित विज्ञापन जिसमें बरसात फिल्म का प्यार हुआ इकरार हुआ गीत बजता था तो हम बगलें झांकने को मजबूर हो जाते थे. आज ऐसा नहीं हैं.

बढ़ती जनसंख्या ने हमारी प्रॉब्लम्स को बढ़ाया ही है. कहते हैं, पानी, अन्न, पेट्रोल जैसे जरूरी चीजें अब सीमित रह गयी हैं. बढ़ती वैश्रि्वक मंदी और बेरोजगारी भी इसी का नतीजा है. ग्लोबल वॉर्मिग, तरह-तरह के पॉल्यूशन, जैव विविधता में कमी, आज हमें चिंतित कर रहे हैं. आइये, आज के दिन हम अपनी प्रॉब्लम्स को समझें और उनके निदान के लिए कुछ सार्थक करें क्योंकि भले ही हम हम सब एक हैं में भरोसा ना करते हों पर हम साथ-साथ हैं में जरूर यकीन रखते हैं. जागने के लिए और अपनी जिम्मेदारियों को समझने के लिए आज का दिन काफी इंपॉर्टेट है. अगर चीजों को देख रहे हैं, समझ रहे हैं तो इनीशिएटिव लेने के बारे में भी हमें ही सोचना होगा. नहीं क्या?
(११ जुलाई को i-next में प्रकाशित)

3 comments:

sushant said...

Kaafi achha likha hai!!!
Meri shubhkaamnao ke saath badhaaiyaan swikar karen!!!!
Agle lekh ke intzaar me....

प्रवीण द्विवेदी की दुकान said...

बड़े बेबाकी और साफगोई से लिखे गए इस लेख के लिए शुभकामना ...

KK Yadav said...

Ap to bindas likhte hain..badhai !!

मेरे ब्लॉग शब्द सृजन की ओर पर पर पढें-"तिरंगे की 62वीं वर्षगांठ ...विजयी विश्व तिरंगा प्यारा"