सैफ्रन टेरर, जी नहीं, मैं उस मुद्दे के बारे में बिलकुल भी बात नहीं कर रहा, जो कुछदिनों पहले मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा थी. मैं बात कर रहा हूं उस टेरर की जिससे हमारे घर, दफ्तर, शिक्षण संस्थान, गली, नुक्कड़, पब्लिक, टॉयलेट, लिफ्ट का कोना कुछ भी अछूता नहीं है. जी हां, पान मसाले और गुटखे की पीक से गहरे लाल-केसरिया रंग में रंगा वह चिर-परिचित आतंक, जिससे हम रोज रू-ब-रू तो होते हैं पर कुछ खास कर नहीं पाते. अब आप सोच रहे होंगे कि आज पान-मसाले व तम्बाकू सेवन पर बात करने की क्या जरूरत पड़ गयी? भई, कल 31 मई को हम वर्ल्ड नो टोबैको डे मनायेंगे. तो आज से ही सोचना पड़ेगा ना? वैसे भी इस मुद्दे पर बात करने की एक वजह और भी है. सोचिए तम्बाकू से हमारा कितना गहरा रिश्ता है. आप नहीं मानते, ठीक है जरा इन आंकड़ों पर ऩजर डालिए. भारत में करीब 120 मिलियन, स्मोकर्स हैं और करीब 10 लाख लोग हर साल तम्बाकू से संबंधित बीमारियों से मारे जाते हैं. भारत में स्मोकिंग करने वाला हर पांच में से एक इंसान तम्बाकू से होने वाले बीमारियों का शिकार होता है. दुनिया भर की बात करें तो हर 6 सेकेंड पर एक इंसान तम्बाकू की वजह से मारा जाता है. ![]() वैसे इन आंकड़ों के बावजूद इसके समर्थकों की कमी नहीं है. ऐसे ही एक समर्थक मित्र का तर्क है कि उनकी हेल्थ है, वह इस बारे में सोचें या ना सोचें, किसी को क्या प्रॉब्लम है? अब उन्हें क्या पता कि अपनी इस आदत से हम अकसर दूसरों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं. फिर चाहे वह हमारी फैमिली हो, दोस्त, सहयोगी या अनजान लोग. हर कोई कभी न कभी हमारी पैसिव स्मोकिंग का शिकार होता है, जो डायरेक्ट स्मोकिंग जितनी ही नुकसानदायक है. वैसे भी यह स्मोकिंग हमारे लिए हार्ट डिजीजेज, तरह-तरह के कैंसर, सेक्स संबंधित समस्यायें, अस्थमा और न जाने क्या-क्या बीमारियां लेकर आती हैं. मेरे मित्र का तर्क यहीं खत्म नहीं हुआ. कहने लगा कि यह धूम्रपान उद्योग कितने ही लोगों को रोजगार देता है. सच्चाई तो यह है कि इस इंडस्ट्री से जुड़े मजदूर हमेशा से गरीब थे और रहेंगे. असली फायदा तो इसके मालिकों को है. फिर भी सिगरेट पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए. वैसे रियल लाइफ के अलावा रील लाइफ में भी स्मोकिंग का बोलबाला रहा है. अधिकांश फिल्मी हीरोज सिल्वर स्क्रीन पर धुएं का छल्ला उड़ाते दिखाई देते हैं. फिर वह ब्लैक एंड व्हाइट जमाने के देव आनन्द हों या आज के शाहरुख खान. एक रिपोर्ट कहती है कि 52 प्रतिशत बच्चे अपना पहला कश इन्हीं सितारों को देखकर भरते हैं. गाहे-बगाहे हमारे गानों ने भी दम मारो दम, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.. सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाके.. बीड़ी जलइले.. से मॉरल सपोर्ट दिया है. कुछ लोग कुतर्क दे सकते हैं कि बीड़ी हर्बल है शायद तभी गुलजार साहब ने इसे जिगर से जलाने की बात कही थी. पर सच्चाई तो यह है कि बीड़ी भी उतनी ही नुकसान दायक है, जितनी सिगरेट. इससे निकलने वाले कार्बन मोनो ऑक्साइड और अन्य जहरीले रसायनों की मात्रा सिगरेट से कहीं ज्यादा होती हैं. अब क्या कहें, इन विज्ञापन कंपनियों को जो इसके सेवन को शाही अंदाज, शाही स्वाद, बड़े लोगों की बड़ी पसंद बताते हैं. सरकार ने एक आदेश में सिगरेट के पैकेट पर 40 परसेंट से ज्यादा हिस्से पर वैधानिक चेतावनी लिखने का आदेश दिया है. पर क्या यह कदम तंबाकू निषेध के लिए काफी है? हमारे देश की एक बहुत बड़ी खासियत है कि हमारे स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में हमसे ज्यादा सरकार और प्रशासन को चिंता करनी पड़ती है. अगर ऐसा नहीं होता तो क्या हैलमेट पहनकर गाड़ी न चलाने, सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान व मद्यपान करके दूसरों के लिए समस्या खड़ी करने के लिए क्या सरकार जुर्माना लेती? आप धूम्रपान प्रेमियों को कितना भी मना कर लीजिए पर वह मानेंगे नहीं. इसलिए धूम्रपान कानून को और कड़ा करने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि कहीं न कहीं हमारा समाज बिन भय होए न प्रीत में अब भी भरोसा करती है. |
डिजीटल दौर में मौलिकता की गारंटी
5 days ago
3 comments:
hi abhi ek baar phir aap ne sabit kiya hai ki kalam mai dum hai bahut khub likha hai.. bas aap likhte rahiye.. hm aise hi feedbacks dete rahege lol tons of wishes..
hi abhi ek baar phir aap ne sabit kiya hai ki kalam mai dum hai bahut khub likha hai.. bas aap likhte rahiye.. hm aise hi feedbacks dete rahege lol tons of wishes..
mere samkaalin!!
bahut achha lekh tha, aur prabhavotpadak bhi, kripya paathkon ko addiction se hone wali bimariyan aur uske nivarn ki vidhiyan bhi batayen.....
bahut hi sarahniya prayaas hai.
meri shubhkaamnayen swikar karen..
Post a Comment